हर्निया एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जो तब होती है जब शरीर का एक अंग अपने स्थान से बाहर निकल आता है। यह विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे इंविग्नल हर्निया, फेमोरल हर्निया, अम्बिलिकल हर्निया, आदि। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि हर्निया कैसे होता है और इसका इलाज क्या है।
हर्निया कैसे होता है?
हर्निया की उत्पत्ति के कई कारण हो सकते हैं। आइए जानें इसके प्रमुख कारण:
- कमजोर मांसपेशियां: जब मांसपेशियों में कमजोरी होती है, तो पेट के अंग या ऊतक कमजोर स्थान से बाहर निकल सकते हैं। यह कमजोरी जन्मजात भी हो सकती है या जीवन के किसी चरण में विकसित हो सकती है।
- ज्यादा वजन उठाना: भारी वजन उठाने से पेट की मांसपेशियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे हर्निया होने का खतरा बढ़ जाता है।
- खांसी और छींक: लगातार खांसी या छींकने से पेट की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है, जो हर्निया का कारण बन सकता है।
- कब्ज: लगातार कब्ज होने से मलत्याग के दौरान जोर लगाने पर पेट की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है, जिससे हर्निया हो सकता है।
- पेट में तरल का संचय: पेट में तरल के संचय (Ascites) से भी पेट की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है, जिससे हर्निया हो सकता है।
हर्निया का इलाज
हर्निया का स्थायी इलाज सर्जरी द्वारा ही संभव है। इसमें मुख्यतः दो प्रकार की सर्जरी होती हैं:
- लैप्रोस्कोपिक सर्जरी:
- यह एक आधुनिक और प्रभावी विधि है, जिसमें छोटे छेद के माध्यम से ऑपरेशन किया जाता है।
- इसमें रिकवरी जल्दी होती है और निशान भी छोटे होते हैं।
- दर्द कम होता है और मरीज जल्द ही सामान्य जीवन में वापस आ सकता है।
- ओपन सर्जरी:
- इसमें बड़ा चीरा लगाया जाता है और हर्निया को ठीक किया जाता है।
- इस सर्जरी में रिकवरी समय अधिक होता है और निशान बड़े होते हैं।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के फायदे
- छोटे चीरे से सर्जरी
- कम दर्द और तकलीफ
- जल्दी रिकवरी
- छोटे निशान
- अस्पताल में कम समय बिताना
- दोबारा हर्निया होने की सम्भावना कम